Thursday, October 19, 2006

दीप

निराशा के तम को चीर कर
आशा का दीप जला दो
मन मंदिर में फिर से
ज्योति कलश सजा दो

विरह वेदना का संताप
नयनों में बसी मिलन की प्यास
प्रणय की नव विभा में
मिलन दीप जला दो

हो रहा जीवन तिल तिल राख
मन में लिए मिलन की आस
उज्जवल आलौकिक फिर से
नव जीवन दीप जला दो

ओ पाहुन.....