Tuesday, April 18, 2006

विरह यामिनी

लिए कर तिमिर हार
चली पथ विरह रात
न संगी लिए संग
न पिया पथ आभास ।

चली रे चली
कहाँ ये चली ।

पहन चाँदनी के दुकूल
धर शीतल घन उर
सजा तारों से अंग मृदुल
नयनों में दीप झिल‍ मिल ।

चली रे चली
कहाँ ये चली ।

कम्पित अंग घटा घनघोर
बिखरा अलकों के भीगे छोर
बाँध पिया संग मन की डोर
लिए श् वासों में सुरभी अनमोल ।
चली रे चली
कहाँ ये चली ।

ओ पाहुन.....