Thursday, March 08, 2007

आयो रे आयो फागुन आज

फागुन की छटा में
बिखरे रंग हजार
सखी-री सखी
मन भाए रंग-रास

आयो रे आयो फागुन आज

धरा गगन का मूक मिलन
धूमिल हुआ आकाश
सघन-घन की बिखरी घटा में
मुखरित हुए सुर-साज

आयो रे आयो फागुन आज

सनन -सनन मलयानिल डोले
उपवन बने फूलों की थाल
सुरभित शीतल मंद पवन-संग
थिरक उठे पग-आप

आयो रे आयो फागुन आज

सिहर सिहर उठती लहरें
कम्‍पित करने तट-गात
संचित स्‍वप्‍न दमके नयनों में
सुन सुन पिया पद-चाप

आयो रे आयो फागुन आज

ओ पाहुन.....