अल्प विराम
Wednesday, September 06, 2006
अश्रु नीर
यह नीर नही
चिर स्नेह निधि
निकले लेन
प्रिय की सुधि
संचित उर सागर
निस्पंद भए
संग श्वास समीर
नयनों में सजे
युग युग से
जोहें प्रिय पथ को
भए अधीर
खोजन निकले
छलके छल-छल
खनक-खन मोती बन
गए घुल रज-कण
एक पल में
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