बहुत खूब दीपशिखा जी, बहुत खूब ! आपने जो कहा, बिल्कुल ठीक कहा । हिंदी फिल्म हमराही (1963) का मर्मस्पर्शी गीत याद आ गया मुझे - 'ये आँसू मेरे दिल की ज़ुबान हैं; मैं रोऊँ तो रो दें आँसू, मैं हँस दूँ तो हँस दें आँसू; ये आँसू मेरे दिल की ज़ुबान हैं'। आपकी कविता के तीसरे पद के संदर्भ में अपनी ओर से केवल इतना ही जोड़ना चाहूंगा (ग़ालिब की ज़ुबान में) - 'आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक, कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक'।
वाह वाह बहुत सुंदर!
ReplyDeleteThanks Neeraj ji.
Deleteवाह बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteसाभार धन्यवाद आदरणीया अनुराधा जी।
Deleteबहुत खूब दीपशिखा जी, बहुत खूब ! आपने जो कहा, बिल्कुल ठीक कहा । हिंदी फिल्म हमराही (1963) का मर्मस्पर्शी गीत याद आ गया मुझे - 'ये आँसू मेरे दिल की ज़ुबान हैं; मैं रोऊँ तो रो दें आँसू, मैं हँस दूँ तो हँस दें आँसू; ये आँसू मेरे दिल की ज़ुबान हैं'। आपकी कविता के तीसरे पद के संदर्भ में अपनी ओर से केवल इतना ही जोड़ना चाहूंगा (ग़ालिब की ज़ुबान में) - 'आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक, कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक'।
ReplyDeleteSir I am really grateful for your kind words of appreciation.
Deleteबहुत सुन्दर रचना, दीपशिखा जी
ReplyDeleteThanks rinki ji.
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद सखी।
Deleteसुन्दर भाव।
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय।
Deleteबहुत सुन्दर रचना दीपशिखा जी ।
ReplyDeleteसाभार धन्यवाद मीना जी
Deleteso touched with these lines Shikha. loved it
ReplyDeleteThanks dear.
Deleteलाजवाब
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
बहुत खूब
साभार धन्यवाद लोकेश जी।
ReplyDeleteबेहद सुन्दर अभिव्यक्ति ! दिल को स्पर्श करता हुआ।
ReplyDeleteसाभार धन्यवाद।
Deleteदिल को छूती बहुत सुंदर रचना, दीपशिखा दी।
ReplyDeleteसस्नेह धन्यवाद।
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