मुस्कान
ओ निशछल मधुर मुस्कान
हर पल मेरा साथ निभाना
तुम बन मेरा साया
इस नीरस मन में समाना
नवजात शिशु सी है
कोमल तुम्हारी छुअन
माञ स्पर्श से देती है
हदय को स्पंदन
इक बार ही सही
मेरे सि्थर मन में
praण फूँक जाना
हो सके
पल दो पल
इसे भी गति दे जाना
सुगंधित पुष्प हो तुम
षोडषी का कोमल तन हो तुम
चपल किशोरी का
चंचल मन हो तुम
हो सके अपनी विस्मयी सुगंध से
मुझे भी महका जाना
अपनी कोमल बाँहोँ का
झूला झुला जाना
अपनी चंचलता मेरे
सि्थर होठों को दे जाना
मरूभूमि में आयी बहार हो तुम
गम्भीरता पर मानो prahar हो तुम
नई नवेली का shingar हो तुम
हो सके तो
बन बहार मेरे जीवन में आना
अपने अचूक वार से
मेरी उदासी मिटाना
बस एक बार फिर
मुझे नई नवेली सा सजा जाना
Monday, September 12, 2005
सूना जीवन
खो गए ओ घन कहाँ तुम
हो कहाँ किस देश में
पथरा गई कोमल धरा
चिर विरह की सेज में।
थी महक जिसमें समाई
तुम्हारे अचल प्रेम की
हुई तृषित वही वसुधा
विरहिणी के भेस में।
हो गए जो विरल घन तुम
सुधा निस्पंद हो गई
बसा पुलक धन उर में
चिर नींद में है सो गई।
लौट आओ तुम नीरधर
बन लघु पुराण विशेष
कह रहीं सूनी आँखें
बेसुध सुधा का संदेश।
हो कहाँ किस देश में
पथरा गई कोमल धरा
चिर विरह की सेज में।
थी महक जिसमें समाई
तुम्हारे अचल प्रेम की
हुई तृषित वही वसुधा
विरहिणी के भेस में।
हो गए जो विरल घन तुम
सुधा निस्पंद हो गई
बसा पुलक धन उर में
चिर नींद में है सो गई।
लौट आओ तुम नीरधर
बन लघु पुराण विशेष
कह रहीं सूनी आँखें
बेसुध सुधा का संदेश।
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