आपकी रचनाएं, चाहे वे छंदबद्ध हों अथवा कविता के पारंपरिक नियमों से परे जाती हुईं, अत्यंत स्वाभाविक रूप से प्रवाहमय लगती हैं एवं मुझे सुमित्रानंदन पंत जी की अमर पंक्तियों का स्मरण कराती हैं - 'वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान; निकल कर आँखों से चुपचाप बही होगी कविता अनजान'।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (19-04-2019) को "जगह-जगह मतदान" (चर्चा अंक-3310) पर भी होगी। -- चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है। जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये। -- सादर...! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बेहतरीन रचना सखी
ReplyDeleteसादर आभार सखी।
Deleteआपकी रचनाएं, चाहे वे छंदबद्ध हों अथवा कविता के पारंपरिक नियमों से परे जाती हुईं, अत्यंत स्वाभाविक रूप से प्रवाहमय लगती हैं एवं मुझे सुमित्रानंदन पंत जी की अमर पंक्तियों का स्मरण कराती हैं - 'वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान; निकल कर आँखों से चुपचाप बही होगी कविता अनजान'।
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय माथुर जी ।
Deleteसुंदर रचना दीपशिखा जी !
ReplyDeleteसस्नेह धन्यवाद नीरज ।
Deleteसादर आभार आदरणीया ।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (19-04-2019) को "जगह-जगह मतदान" (चर्चा अंक-3310) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर आभार आदरणीय डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री जी ।
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर ...लाजवाब रचना।
सादर आभार ।
Deleteसुन्दर रचना दीपशिखा जी ।
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीया ।
Deleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 18/04/2019 की बुलेटिन, " विश्व धरोहर दिवस 2019 - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय ।
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय ।
Deleteवाह .... खूबसूरत अंदाज़
ReplyDeleteबेहतरीन प्रिय सखी 👌
ReplyDeleteसादर
बहुत सुंदर भाव पूर्ण क्षणिकाएं अंतर तक उतरती ।
ReplyDeleteअप्रतिम।
सादर आभार ।
Deleteमन की वीणा के स्वर शब्दों से निकल रहे हैं ...
ReplyDeleteसुन्दर लम्हों को बाँध के लिखी रचना है ...
सादर आभार आदरणीय दिगम्बर जी ।
Deleteबेहतरीन अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीया ।
Deleteगहरी संवेदनाये लिए बहुत ही सुंदर रचना....
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीया ।
Deleteवाह ! शब्द, शिल्प, शैली और प्रवाह ... सभी तरह से उच्चकोटि की रचना। सुंदर।
ReplyDeleteसस्नेह धन्यवाद सखी ।
Deleteवाह .... खूबसूरत अंदाज़ दीपशिखा जी
ReplyDeleteसादर आभार संजय जी ।
ReplyDeleteवा व्व बहुत ही खूबसूरत रचना,दीपशिखा दी।
ReplyDeleteThanks dear
ReplyDeleteVery well written. Lovely lines.
ReplyDeleteThanks Indrani ji
Deleteनि:शब्द हूं ये पढ़कर, नई कविता ने छंदों से नाता तोड़ सा दिया था। धन्यवाद दीपशिखा जी
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय ।
Deleteसचमुच निशब्द करने वाली शैली | मुझे तो अनायासमहादेवी जी का स्मरण हो आता है | सस्नेह शुभकामनायें सखी | आपकी रचनाएँ अनमोल हैं |
ReplyDeleteसस्नेह धन्यवाद सखी ।
Deleteआपकी लेखनी मुझे महान कवित्री महादेवी वर्मा की याद दिला देती है। हिंदी के शब्दों का प्रयोग करना आपसे सीखने लायक है।
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय ।
Delete