खो गए ओ घन कहाँ तुम
हो कहाँ किस देश में
पथरा गई कोमल धरा
चिर विरह की सेज में।
थी महक जिसमें समाई
तुम्हारे अचल प्रेम की
हुई तृषित वही वसुधा
विरहिणी के भेस में।
हो गए जो विरल घन तुम
सुधा निस्पंद हो गई
बसा पुलक धन उर में
चिर नींद में है सो गई।
लौट आओ तुम नीरधर
बन लघु पुराण विशेष
कह रहीं सूनी आँखें
बेसुध सुधा का संदेश।
अभी तो नीरधर मुंबई विचरण कर रहा है.कविता पढ़के अब आयेगा.काफी दिन बाद लिखा .जल्दी-जल्दी लिखा करें तो और अच्छा लगेगा.हिंदी दिवस पर कुछ और इनाम जीतने के लिये शुभकामनायें.
ReplyDelete