फागुन की छटा में
बिखरे रंग हजार
सखी-री सखी
मन भाए रंग-रास
आयो रे आयो फागुन आज
धरा गगन का मूक मिलन
धूमिल हुआ आकाश
सघन-घन की बिखरी घटा में
मुखरित हुए सुर-साज
आयो रे आयो फागुन आज
सनन -सनन मलयानिल डोले
उपवन बने फूलों की थाल
सुरभित शीतल मंद पवन-संग
थिरक उठे पग-आप
आयो रे आयो फागुन आज
सिहर सिहर उठती लहरें
कम्पित करने तट-गात
संचित स्वप्न दमके नयनों में
सुन सुन पिया पद-चाप
आयो रे आयो फागुन आज