Thursday, March 08, 2007

आयो रे आयो फागुन आज

फागुन की छटा में
बिखरे रंग हजार
सखी-री सखी
मन भाए रंग-रास

आयो रे आयो फागुन आज

धरा गगन का मूक मिलन
धूमिल हुआ आकाश
सघन-घन की बिखरी घटा में
मुखरित हुए सुर-साज

आयो रे आयो फागुन आज

सनन -सनन मलयानिल डोले
उपवन बने फूलों की थाल
सुरभित शीतल मंद पवन-संग
थिरक उठे पग-आप

आयो रे आयो फागुन आज

सिहर सिहर उठती लहरें
कम्‍पित करने तट-गात
संचित स्‍वप्‍न दमके नयनों में
सुन सुन पिया पद-चाप

आयो रे आयो फागुन आज

7 comments:

  1. फागुन तो बीत गयों…!!!
    अब तो फुहार भी गई…।
    लेकिन बहुत सुंदर रचना है…मन को मोह लिया…।
    शायद पहली बार इस जाल पर आया हूँ अच्छा लगा!!

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  2. अब लिखने की गति बढ़ाई जाये. महिने में एक की जगह दो-तीन तो करें. बढ़िया है.

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  3. Beautiful expression of deep heart felt feeling. keep it up. Your words are very selective and full of sincere expression.
    Prof M. R. Jain

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  4. wonderful presentation of a wonderful festival

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  5. And I always believed that I can understand Hindi :)

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  6. आ गया पटाखा हिन्दी का
    अब देख धमाका हिन्दी का
    दुनिया में कहीं भी रहनेवाला
    खुद को भारतीय कहने वाला
    ये हिन्दी है अपनी भाषा
    जान है अपनी ना कोई तमाशा
    जाओ जहाँ भी साथ ले जाओ
    है यही गुजारिश है यही आशा ।
    NishikantWorld

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  7. I really liked ur post, thanks for sharing. Keep writing. I discovered a good site for bloggers check out this www.blogadda.com, you can submit your blog there, you can get more auidence.

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ओ पाहुन.....