फागुन की छटा में
बिखरे रंग हजार
सखी-री सखी
मन भाए रंग-रास
आयो रे आयो फागुन आज
धरा गगन का मूक मिलन
धूमिल हुआ आकाश
सघन-घन की बिखरी घटा में
मुखरित हुए सुर-साज
आयो रे आयो फागुन आज
सनन -सनन मलयानिल डोले
उपवन बने फूलों की थाल
सुरभित शीतल मंद पवन-संग
थिरक उठे पग-आप
आयो रे आयो फागुन आज
सिहर सिहर उठती लहरें
कम्पित करने तट-गात
संचित स्वप्न दमके नयनों में
सुन सुन पिया पद-चाप
आयो रे आयो फागुन आज
फागुन तो बीत गयों…!!!
ReplyDeleteअब तो फुहार भी गई…।
लेकिन बहुत सुंदर रचना है…मन को मोह लिया…।
शायद पहली बार इस जाल पर आया हूँ अच्छा लगा!!
अब लिखने की गति बढ़ाई जाये. महिने में एक की जगह दो-तीन तो करें. बढ़िया है.
ReplyDeleteBeautiful expression of deep heart felt feeling. keep it up. Your words are very selective and full of sincere expression.
ReplyDeleteProf M. R. Jain
wonderful presentation of a wonderful festival
ReplyDeleteAnd I always believed that I can understand Hindi :)
ReplyDeleteआ गया पटाखा हिन्दी का
ReplyDeleteअब देख धमाका हिन्दी का
दुनिया में कहीं भी रहनेवाला
खुद को भारतीय कहने वाला
ये हिन्दी है अपनी भाषा
जान है अपनी ना कोई तमाशा
जाओ जहाँ भी साथ ले जाओ
है यही गुजारिश है यही आशा ।
NishikantWorld
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