घनघोर तम, निस्तेज तनअनुपम छटा छा गईनेह के मोती पिरोतीवो रात फिर आ गईबिखरे पड़े घन केशघुल रहा संताप हैप्रेम के नवगीत गातीवो रात फिर आ गईअलसित धरा ताके गगनबस में नही चंचल मनअम्बर धरा के मिलन कीवो रात फिर आ गई