आज कल
समय के फेर में ना जाने ये क्या हो गया
आईने ने मेरा अक्स ही धो दिया
अपनी ही परछाई से डरने लगी हूँ मैं
वो अनजान अजनबी सी बन गई है क्यूँ
जिस राह में सदियों से था मेरा रोज आना जाना
वो गुमनाम गलियों सी लगने लगी हैं क्यूँ
चाव से कहते थे हम जिसे अपना आशियाना
हर दिवार उसकी हम पर हॅसने लगी है क्यूँ
बदले जमाने की बदली है हवा ऐसी
हीरा भी काँच की चमक देता है आज क्यूँ
समय के फेर में ना जाने ये क्या हो गया
आईने ने मेरा अक्स ही धो दिया
अपनी ही परछाई से डरने लगी हूँ मैं
वो अनजान अजनबी सी बन गई है क्यूँ
जिस राह में सदियों से था मेरा रोज आना जाना
वो गुमनाम गलियों सी लगने लगी हैं क्यूँ
चाव से कहते थे हम जिसे अपना आशियाना
हर दिवार उसकी हम पर हॅसने लगी है क्यूँ
बदले जमाने की बदली है हवा ऐसी
हीरा भी काँच की चमक देता है आज क्यूँ
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