Thursday, March 24, 2005


आयी होली आयी

आयी होली आयी
बजने लगे
उमंग के साज
इन्द् धनुषीय रंगों से
रंग दो
पिया आज

न भाए रंग
अबीर का
न सोहे
रंग गुलाल
नेह के रंग से पिया
रंग दो
चुनरिया लाल

न जानूँ बात
सुरों की
है अनजानी
हर ताल
होली के मद में नाचूंगी
तुम संग
हो बेसुध बिन साज

बाट तुम्हारी
मैं जोहुंगी
नयन बिछाए
हर राह
भूल न जाना
बात मिलन की
आई होली आज

11 comments:

  1. दीपशिखा जी,

    होली की शुभकामनाएं। पिया प्रेम और होली की कविता पढ़ कर मजा आ गया। प्रेम का भाव यही होना चाहिए। अभी अपनी श्रीमती जी की "must-read" सूची में लगाता हूँ।

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  2. गीत प्रेमरस से ओतप्रोत है । होली की शुभकामनाऐं ।

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  3. होली की शुभकामनाएं। होली की कविता Acchi likhi hai...

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  4. दीपा-जी:
    होली का रंग उतरा नहीं अबतक लगता है, आगे की भी सुधि लीजिए। आपके अगली प्रविष्टी का बेसब्री से इंतज़ार है।

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  5. Hi!

    Read your poem on Holi.Good one!
    My short-stories are written in English, but they are 100% Indian!
    Visit
    http://kissay.rediffblogs.com

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  6. विकिपीडिया हिन्दी में योगदान करना न भूलें
    hi.wikipedia.org

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  7. Good!
    Piya jab sangh honge
    Holi ke Rang tabh hi to
    Sache Rang Honge
    Yoon to barsaye hai bahuteron ne
    Rang har holi par
    Kaisa Rang diya tumne
    Ki ab bas koyee
    aur rang nahin bhaye
    Bahut aye mujhe rangne holi par
    Ek bas tum nahin aaye

    That's how poetry comes to me
    Naturally and Instantaneously
    navneet bakshi
    bakshink@yahoo.com

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  8. दीपा जी,
    कविता में भाव की मह्त्ता को कॊन नकार सकता है.....भावों से भरी कविताओं के लिए बधाई.

    स्नेह सहित-
    संजय विद्रोही

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  9. कहां हैं आप? आपकी लेखनी से मैं बहुत प्रभावित हूं। फिर पढ़ने का सौभाग्य कब मिलेगा?

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  10. Hello Deepa!

    Visiting your blog after a long time.And it doesn't have a single new post!Come on get back to writing...I have.
    Read my New Post @
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  11. लगता है कि अल्‍पविराम पूर्णविराम में परिवर्तित हो चुका है। :)

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ओ पाहुन.....