आयी होली आयी
आयी होली आयी
बजने लगे
उमंग के साज
इन्द् धनुषीय रंगों से
रंग दो
पिया आज
न भाए रंग
अबीर का
न सोहे
रंग गुलाल
नेह के रंग से पिया
रंग दो
चुनरिया लाल
न जानूँ बात
सुरों की
है अनजानी
हर ताल
होली के मद में नाचूंगी
तुम संग
हो बेसुध बिन साज
बाट तुम्हारी
मैं जोहुंगी
नयन बिछाए
हर राह
भूल न जाना
बात मिलन की
आई होली आज
दीपशिखा जी,
ReplyDeleteहोली की शुभकामनाएं। पिया प्रेम और होली की कविता पढ़ कर मजा आ गया। प्रेम का भाव यही होना चाहिए। अभी अपनी श्रीमती जी की "must-read" सूची में लगाता हूँ।
गीत प्रेमरस से ओतप्रोत है । होली की शुभकामनाऐं ।
ReplyDeleteहोली की शुभकामनाएं। होली की कविता Acchi likhi hai...
ReplyDeleteदीपा-जी:
ReplyDeleteहोली का रंग उतरा नहीं अबतक लगता है, आगे की भी सुधि लीजिए। आपके अगली प्रविष्टी का बेसब्री से इंतज़ार है।
Hi!
ReplyDeleteRead your poem on Holi.Good one!
My short-stories are written in English, but they are 100% Indian!
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http://kissay.rediffblogs.com
विकिपीडिया हिन्दी में योगदान करना न भूलें
ReplyDeletehi.wikipedia.org
Good!
ReplyDeletePiya jab sangh honge
Holi ke Rang tabh hi to
Sache Rang Honge
Yoon to barsaye hai bahuteron ne
Rang har holi par
Kaisa Rang diya tumne
Ki ab bas koyee
aur rang nahin bhaye
Bahut aye mujhe rangne holi par
Ek bas tum nahin aaye
That's how poetry comes to me
Naturally and Instantaneously
navneet bakshi
bakshink@yahoo.com
दीपा जी,
ReplyDeleteकविता में भाव की मह्त्ता को कॊन नकार सकता है.....भावों से भरी कविताओं के लिए बधाई.
स्नेह सहित-
संजय विद्रोही
कहां हैं आप? आपकी लेखनी से मैं बहुत प्रभावित हूं। फिर पढ़ने का सौभाग्य कब मिलेगा?
ReplyDeleteHello Deepa!
ReplyDeleteVisiting your blog after a long time.And it doesn't have a single new post!Come on get back to writing...I have.
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लगता है कि अल्पविराम पूर्णविराम में परिवर्तित हो चुका है। :)
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