खिला कहीं किसी चमन में
एक फूल सुन्दर
अनुपम थी उसकी आभा
विस्मयी थी उसकी रंगत
इतना सुगंधित कि
हर मन हर्षा जाता
अपने गुणों से
वह प्रकर्ति का उपहार था
कहलाता
ज्यों ज्यों समय बीता
वह पुष्प और महका
अपने सौन्दर्य से
उस बगिया का
केन्द्र बन बैठा
तभी एक रात
भयानक तूफान आया
अपने बल से जिसने
चट्टानों को भी सरकाया
तूफान के जोर को
वह फूल भी न सह पाया
पलक झपकते ही
धूल में जा समाया
मन चमन के दुर्भाग्य पर
पछताया
क्यों इतना सुन्दर कुसुम
वह न सम्भाल पाया
काल के जोर को
कोई
क्यूँ न थाम पाया
तभी चमन ने
अपनी महक से
जीवन का अर्थ समझाया
कुछ पल ही सही
उस कुसुम ने
चमन को महकाया
जब तक जिया
सभी के मन को लुभाया
अल्प ही सही
उसका जीवन सच्चा जीवन कहलाया
Thursday, November 10, 2005
Wednesday, November 09, 2005
दीप
दीप
जल अकम्पित
दीप उज्जवल
हो आलोकित
मन मन्दिर
मंगल गान
करे दिशाएँ
पुलक उठे
भू शिराऍ
हो `पज्जवलित
बन `पचडंधार
शुभ मंगल का
हो संचार
जल निरंतर
अचंचल हर पल
भोर के
आने तक
तम के घरा से
मिट जाने तक
जल अकम्पित
दीप उज्जवल
जल अकम्पित
दीप उज्जवल
हो आलोकित
मन मन्दिर
मंगल गान
करे दिशाएँ
पुलक उठे
भू शिराऍ
हो `पज्जवलित
बन `पचडंधार
शुभ मंगल का
हो संचार
जल निरंतर
अचंचल हर पल
भोर के
आने तक
तम के घरा से
मिट जाने तक
जल अकम्पित
दीप उज्जवल
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