Wednesday, November 09, 2005

दीप

दीप

जल अकम्पित
दीप उज्जवल
हो आलोकित
मन मन्दिर

मंगल गान
करे दिशाएँ
पुलक उठे
भू शिराऍ

हो `पज्जवलित
बन `पचडंधार
शुभ मंगल का
हो संचार

जल निरंतर
अचंचल हर पल
भोर के
आने तक
तम के घरा से
मिट जाने तक

जल अकम्पित
दीप उज्जवल

1 comment:

ओ पाहुन.....