अल्प विराम
Wednesday, November 09, 2005
दीप
दीप
जल अकम्पित
दीप उज्जवल
हो आलोकित
मन मन्दिर
मंगल गान
करे दिशाएँ
पुलक उठे
भू शिराऍ
हो `पज्जवलित
बन `पचडंधार
शुभ मंगल का
हो संचार
जल निरंतर
अचंचल हर पल
भोर के
आने तक
तम के घरा से
मिट जाने तक
जल अकम्पित
दीप उज्जवल
1 comment:
sachinleo80
5:33 AM
Kya ye sab aapka likha hua hai???
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ओ पाहुन.....
ओ पाहुन.....
बेपीर
प्रिय तुम तक कैसे मैं आती.....
प्रिय! तुम तक कैसे मैं आती ..... प्रिय! तुम तक कैसे मैं आत...
Kya ye sab aapka likha hua hai???
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