अल्प विराम
Sunday, March 26, 2006
कौन से पथ राह जोहूँ
कौन से पथ राह जोहूँ
गए किस ओर साँवरे
बाट जोहत सजल नयना
हो गए अब बावरे।
निर्झर अम्बर बरस रहा
मिटा घरा गगन का भेद
पिघल दिशाएँ एक भईं
लिए संग व्यथा संदेश।
पल पल बीता युग भया
नहीं टूटी उर की आस
आन मिलो अब साँवरे
भेद विरह संताप
1 comment:
प्रेमलता पांडे
11:12 PM
बहुत सुंदर माधुर्यपूर्ण रचना है।
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ओ पाहुन.....
ओ पाहुन.....
बेपीर
प्रिय तुम तक कैसे मैं आती.....
प्रिय! तुम तक कैसे मैं आती ..... प्रिय! तुम तक कैसे मैं आत...
बहुत सुंदर माधुर्यपूर्ण रचना है।
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