अबीर गुलाल की थाल हाथ में
द्वार लगायो बंदनवार
नेह के रंगों से चौक पूजा
आयो होली का त्यौहार
सनन सनन सन चले पवनिया
डोले भँवरा महुआ डाल
बिन गीत बिन साज के
झूमत हर नर नारी
कोई उड़ावे रंग हवा में
कोई रंगे गाल
कोई बजावे ढोल पखावज
कोई देवत ठुमरी पे दाद
भाग रही देखो राधा
पीछे पीछे ग्वाल बाल
आ झपट रंग लगायो
बेसुध राधा न जानी
नटखट कान्हा की चाल
कोई उड़ावे रंग हवा में
ReplyDeleteकोई रंगे गाल
कोई बजावे ढोल पखावज
कोई देवत ठुमरी पे दाद ...
बहुत सुंदर गीत है.बधाई.
समीर लाल
होली पर आप्अकी कविता बहुत प्यारी लगी | आपको भी होली की शुभकामनाएँ !
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