बिन परिचय
 बिन आभास के
आया पाहुन जो  पास
मघुर कसक सी 
दे गया
निस्पंद उर में आज    
व्याकुल थे
ळोचन युगो से
एक झलक पाने को
आन बसा वो
रोम रोम में
चिर तृष्णा मिटाने को
श्वास निश्वास की
डोर बंधे पल
कई  युग बनाने को
रच बस गया
 'वह' हृदय में
युगों का फेर मिटाने को
 
आपकी रचना पढ़ी सुंदर और प्रिय आगमन की अभिव्यक्ति लिए है, अंतत:-
ReplyDeleteपाहुन तुम आज पधारे एसे हो,
मरुभूमि में मधुबन सी सुहास अचानक जैसे हो,
-रेणु आहूजा.