Thursday, October 19, 2006

दीप

निराशा के तम को चीर कर
आशा का दीप जला दो
मन मंदिर में फिर से
ज्योति कलश सजा दो

विरह वेदना का संताप
नयनों में बसी मिलन की प्यास
प्रणय की नव विभा में
मिलन दीप जला दो

हो रहा जीवन तिल तिल राख
मन में लिए मिलन की आस
उज्जवल आलौकिक फिर से
नव जीवन दीप जला दो

6 comments:

  1. Anonymous1:49 AM

    बहुत अच्छी रचना- दीप- दीपा जी ।

    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ ।

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  2. आपकी यह पंक्तियाँ मेरे मन को बहुत भा गईं वो शायद इसलिइ क्योंकि अभी मेरी यहीं स्थिति हैं
    विरह वेदना का संताप
    नयनों में बसी मिलन की प्यास
    प्रणय की नव विभा में
    मिलन दीप जला दो


    आपको दीपावली की शुभकामनाएँ!!!

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  3. दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं

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  4. उज्जवल आलौकिक फिर से
    नव जीवन दीप जला दो

    -सुंदर भाव हैं.

    दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें एवं बधाई.

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  5. Anonymous6:34 AM

    दीपोत्‍सव पर्व मंगलमय हो।

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  6. Anonymous7:26 AM

    विरह की अगन हृदय की तपन
    होले होले बरसे मेरे व्‍याकुल नयन

    बहुत सुन्‍दर भाव है
    बहुत बधाइयाँ
    --कृष्‍णशँकर सोनाने

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ओ पाहुन.....