फागुन की छटा में
बिखरे रंग हजार
सखी-री सखी
मन भाए रंग-रास
आयो रे आयो फागुन आज
धरा गगन का मूक मिलन
धूमिल हुआ आकाश
सघन-घन की बिखरी घटा में
मुखरित हुए सुर-साज
आयो रे आयो फागुन आज
सनन -सनन मलयानिल डोले
उपवन बने फूलों की थाल
सुरभित शीतल मंद पवन-संग
थिरक उठे पग-आप
आयो रे आयो फागुन आज
सिहर सिहर उठती लहरें
कम्पित करने तट-गात
संचित स्वप्न दमके नयनों में
सुन सुन पिया पद-चाप
आयो रे आयो फागुन आज
Thursday, March 08, 2007
Friday, February 09, 2007
माँ
जीवन वन में स्वच्छंद सुमन सी
अंबर चुंबी हिमश्रृंगों सी
विधुत की प्राणमयी धारा सी
माँ गंगा की निर्मल काया सी
स्नेहमयी घन अम्बर जैसी
ममतामयी शीतल समीर सी
विशाल हृदयी अथाह सागर जैसी
माँ की छवी परम पावन सी
भौर की प्रथम उज्जवल किरण सी
भौर की प्रथम उज्जवल किरण सी
सघन धूप में छाँव सी
गोधुली में दीपक जैसी
माँ निशापथ में तारक सी
भाषा में स्वर व्यंजन जैसी
भाषा में स्वर व्यंजन जैसी
गीतों में सुर ताल सी
वीणा के मधुर सुरों सी
माँ मुरली की तान सीवेदों के ज्ञान जैसी
गीता के सार सी
गुरमुख की वाणी जैसी
माँ काबा काशी सी
चिर सखी राधा जैसी
पथ दृष्टा सुरदर्शन सी
देव सृष्टि की प्रतिकृति सी
माँ महातरु छाया सी
श्रद्धा की परिभाषा जैसी
जीवन का विश्वास सी
घरा के घैर्य का प्रतिरुप सी
माँ स्र्वज्ञय ज्ञाता सी
हृदय में स्पंदन जैसी
श्वास निश्वास के बंधन
रोम रोम में रुधिर सरिखी
माँ परम कल्याणी सी
देवालय की अनुपम मुरत सी
गिरजा घर की सुखद शान्ति सी
पारस सी शक्ति धारणी
माँ तुम ही परमेश्वर हो
माँ तुम ही परमेश्वर हो
माँ तुम ही परमेश्वर हो
Subscribe to:
Posts (Atom)