इन्कलाब
आग ही आग
दिशाऍ करती हाहाकार
काटो, मारो
के प्रखर नाद से
घुमिल हो रहा प्रलाप है
कौन जाने, कौन से मजहब का
ये कैसा इन्कलाब है
दिशाऍ करती हाहाकार
काटो, मारो
के प्रखर नाद से
घुमिल हो रहा प्रलाप है
कौन जाने, कौन से मजहब का
ये कैसा इन्कलाब है
माँ की कोख,
घर का आँगन
बन गया शमशान है
हर दिशा, हर कोने से
उठ रही चितकार है
कौन जाने, कौन से मजहब का
ये कैसा इन्कलाब है
घर का आँगन
बन गया शमशान है
हर दिशा, हर कोने से
उठ रही चितकार है
कौन जाने, कौन से मजहब का
ये कैसा इन्कलाब है
नई नवेली का सुहाग
किसी घर का बुझा चिराग है
शहर, गली, नुक्कड़
हर ओर से
उठ रहा अंगार है
कौन जाने, कौन से मजहब का
ये कैसा इन्कलाब है
किसी घर का बुझा चिराग है
शहर, गली, नुक्कड़
हर ओर से
उठ रहा अंगार है
कौन जाने, कौन से मजहब का
ये कैसा इन्कलाब है
स्वार्थो की सिध्दी
मासूमों पर प्रहार
धर्म की आड़ मेँ
वोटों का सजा बाजार है
कौन जाने, कौन से मजहब का
ये कैसा इन्कलाब है
मासूमों पर प्रहार
धर्म की आड़ मेँ
वोटों का सजा बाजार है
कौन जाने, कौन से मजहब का
ये कैसा इन्कलाब है
कौन जाने कौन से मजहब का ये कैसा इन्कलाब है-बहुत खूब। बधाई।
ReplyDeleteबहुत ही यथार्थ और सजीव चित्रण।
ReplyDeleteits a brilliant work, really nice...
ReplyDelete