Friday, November 14, 2008

तेरा खत


हजारोँ पैगाम भेजे
तब इक जवाब आया
बरसोँ बाद
तेरी खुशबू से भरे
तेरे खत को
धड़कते दिल से
था हमने लगाया
हर मोती पर था
तेरी बेरूखी का साया
जिसके जोर ने
नम आँखोँ को भी
था आज पथराया
लिखा था तूने
"तुझको भूल जाँऊ
थी जो दिल्लगी
ना यू दिल से लगाऊँ
थी वो एक भूल
ना अब बुझी
आग सुलगाऊँ"
हजारोँ बार
तेरे खत को
इस बार भी पढ़ा हमने
अंदाज, लिखावट, खुशबू
सभी पहचाने पहचाने
से लगे
ना जाने क्यू
आज पहली बार
चाँद में
बस दाग ही दाग दिखे

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर काव्य!

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  2. bahut sundar bhav

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  3. bahut sundar.. aaj bahut dino ke baad aapka likha hua padha...

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  4. बहुत सुंदर रचना है।

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ओ पाहुन.....