Saturday, March 12, 2005

तुम्हारा व मेरे प्रेम का इतिहास

सागर मंथन
निशब्द परलाप
अनकही वेदना
हिय से उठती आह

इन पिघलते एहसासों ने रचा
तुम्हारे व मेरे प्रेम का इतिहास

व्योम तकती आँखें
निरंतर परमाद
चिर संगिनी यादें
नीरव पलों का साथ

इन पिघलते एहसासों ने रचा
तुम्हारे व मेरे प्रेम का इतिहास

विरह यामिनी
निस्तेज pran
निस्पंद जीवन
विषाद सजल मन

इन पिघलते एहसासों ने रचा
तुम्हारे व मेरे प्रेम का इतिहास

अनकही पहेली
अनजानी तकरार
न आयी कभी बसंत
न देखी हमनें बहार

इन पिघलते एहसासों ने रचा
तुम्हारे व मेरे प्रेम का इतिहास

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ओ पाहुन.....