Monday, September 12, 2005

मुस्कान

मुस्कान

ओ निशछल मधुर मुस्कान
हर पल मेरा साथ निभाना
तुम बन मेरा साया
इस नीरस मन में समाना

नवजात शिशु सी है
कोमल तुम्हारी छुअन
माञ स्पर्श से देती है
हदय को स्पंदन
इक बार ही सही
मेरे सि्थर मन में
praण फूँक जाना
हो सके
पल दो पल
इसे भी गति दे जाना

सुगंधित पुष्प हो तुम
षोडषी का कोमल तन हो तुम
चपल किशोरी का
चंचल मन हो तुम
हो सके अपनी विस्मयी सुगंध से
मुझे भी महका जाना
अपनी कोमल बाँहोँ का
झूला झुला जाना
अपनी चंचलता मेरे
सि्थर होठों को दे जाना

मरूभूमि में आयी बहार हो तुम
गम्भीरता पर मानो prahar हो तुम
नई नवेली का shingar हो तुम
हो सके तो
बन बहार मेरे जीवन में आना
अपने अचूक वार से
मेरी उदासी मिटाना
बस एक बार फिर
मुझे नई नवेली सा सजा जाना

3 comments:

  1. गंभीरता पर प्रहार बहुत दिन बाद किया गया.मुस्कान आई है कविता पढ़कर.

    ReplyDelete
  2. बहुत दिनो बाद लौटी? क्या हाल है?
    अब लिखना लगातार जारी रखना, कोई बहाना नही चलेगा. समझी?

    ReplyDelete
  3. सुन्दर कविता है।

    ReplyDelete

ओ पाहुन.....