स्मृति के पट से
उठ रहीं पदचाप हैं
चूमने जिन्हें फिर फिर
कोमल अधर बेताब है
थिरकती पुतलियों ने
किया आसव पान है
छोङ संग मूक वेदना
हो चली अनजान है
झंकृत जीवन वीणा पर
उर ने छेङी तान है
कामनाओं के इन्द्रधनुष से
लुप्त हुआ एकांत है
कह रही हर गूँज
गल रहा संताप है
विरह-निशि के बाद
देखो ! मधुर मिलन अब पास है
nice potrait drawn of "Judai" and "Milan"......
ReplyDeleteimpressive one.