Wednesday, February 20, 2008

आस्‍था और विश्‍वास.......

एक रोज अचानक
मुझसे मेरी बेटी ने
किया आकर
अद्‍भुत एक सवाल
माँ क्‍या सच में ....
'थे भगवान राम'


नष्‍ट हुई लंका में
नित मिल रहे हैं
कई प्रमाण
बताओ ना
'माँ क्‍या सच में
थे भगवान राम

था सवाल सहज, सरल

कर गया मगर उर विह्‍वल
गुँजनें लगे वे अबोध-शब्‍द
बन प्रचण्‍ड स्‍वर-लहर
माँ क्‍या सच में
'थे भगवान राम'

प्रश्‍न जितना प्रखर था
जवाब में शब्‍द
उतने ही मौन
लगी सोचने
कैसे बताऊँ इसको
'थे प्रभु राम कौन

थी चैतन्‍य जब आस्‍था
मन में बसते थे तब राम
नहीं खोजता था तब कोई
जा-जाकर चारों धाम
है डगमगायी वही आस्‍था
लिए निस्‍तेज प्राण
डोल रही घट-घट
ले-लेकर प्रभु नाम
सोचती हूँ तब से
मन में लिए तूफान
कैसे बताऊँ उसको
बिन दिए कोई प्रमाण
कण-कण में
अब भी बसते है
परम पुज्‍य प्रभु राम

2 comments:

  1. दीपा जी आप ने कविता के रुप मे कया कुछ नही कह दिया,आप की कविता सुन्दर नही अति सुन्दर हे, ओर यह पक्तिया तो मन को बहुत भायी
    *थी चैतन्‍य जब आस्‍था
    मन में बसते थे तब राम
    नहीं खोजता था तब कोई
    जा-जाकर चारों धाम

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  2. अद्भुत चिन्तन है...सुन्दर कविता...

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ओ पाहुन.....