मिला निमंत्रण
एक सभा से
आकर सभा को
सम्बोधित कीजिए
अपनी सरल व सुलझी
भाषा में
भ्रष्टाचार जैसी बुराई
पर कुछ बोलिए।
ऐसे सम्मान का था
ये प्रथम अवसर
गौरव के उल्लास में
हमने भी हामी भर दी
समस्या की गहनता को
बिना जाने समझे
हमने इक नादानी कर दी।
वाह वाही की चाह में
हमने सोचा
चलो भाषण की
रूप रेखा रच ले
अखबारों व पत्रिकाओं में
इस विषय में
जो कुछ छपा हो
सब रट लें।
जितना पढ़ते गए
विषय से हटते चले गएजो एक आध
मौलिक विचार थे भी
वो मिटते चले गए।
लगने लगा हमें
कि ये हमने क्या कर दिया
अभिमन्यु तो भाग्य से फँसा था
हमने चक्रव्यूह खुद रच लिया ।
देखते ही देखते
आ पहुँचा वो दिन
किसी अग्नि परीक्षा से
जो नही था अब भिन्न
तालियों की
गड़गड़हट से
हुआ हमारा अभिनंदन
घबराहट में र्धैय के टूटे सभी बंधन
हुआ हमारा अभिनंदन
घबराहट में र्धैय के टूटे सभी बंधन
ना जाने कैसे
रटा हुआ
सब भूल गए
रटा हुआ
सब भूल गए
कहना कुछ था
और कुछ कह गए।
और कुछ कह गए।
मन के किसी कोने में
छिपे उदगार बोल उठे
खुद को मासुम
व सम्पू्र्ण समाज को
व सम्पू्र्ण समाज को
भ्रष्ट बोल गए।
उस दोषारोपण ने
सभा का बदल दिया रंग
उभर आई भीड़
धीरे धीरे होने लगी कम।
उभर आई भीड़
धीरे धीरे होने लगी कम।
देखते ही देखते
वहाँ रह गए बस हम
और इस तरह
दुखद हुआ
उस महासभा का अंत
दुखद हुआ
उस महासभा का अंत
रचना बहुत अच्छी लगी आपकी, पहली बार आपको पढ़ा, बहुत अच्छा लगा, सुन्दर रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई आपको । जहाँ तक मुझे लगा आपका सब भुल जाना, इसलिए हुआ कि अब अगर एक भ्रष्टाचारी हो और उसपर कुछ बोलनां हो तो कुछ हो भी सकता है, अब जहाँ इनकीं सख्या बहुत ज्यादा हो, तो ऐसे मुद्दो पर बोलना जरा कठीन हो जाता है।
ReplyDeleteभ्रष्टाचार अपने समय की अद्भुत चीज है।
ReplyDeleteबहुत खूब
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