मत छुओ इन पलकों को
बन अश्रु पीड़ा बहने दो।
भूल गई थीं
पथ ये अपना
चंचल सपनों संग
चिर मेल अपना
सपनों के कम्पन से
आज इनका सूनापन
मिटने दो।
मत छुओ इन पलकों को
बन अश्रु पीड़ा बहने दो।
मूक व्यथा ने था
किया बसेरा
विरह घन ने था
इनको घेरा
बन अश्रु पीड़ा बहने दो।
भूल गई थीं
पथ ये अपना
चंचल सपनों संग
चिर मेल अपना
सपनों के कम्पन से
आज इनका सूनापन
मिटने दो।
मत छुओ इन पलकों को
बन अश्रु पीड़ा बहने दो।
मूक व्यथा ने था
किया बसेरा
विरह घन ने था
इनको घेरा
दृग शिला को
बन जल-कण
आज बिखरने दो
मत छुओ इन पलकों को
बन अश्रु पीड़ा बहने दो।
बन जल-कण
आज बिखरने दो
मत छुओ इन पलकों को
बन अश्रु पीड़ा बहने दो।
युगों में बीते
विरह पल-छिन
तरसे दरस बिन
तृषित लोचन
उर सागर को
आज अमिट प्यास
हरने दो।
मत छुओ इन पलकों को
बन अश्रु पीड़ा बहने दो।
व्यथित कर देने वाली विरह वेदना
ReplyDeleteमूक व्यथा ने था
ReplyDeleteकिया बसेरा
विरह घन ने था
इनको घेरा
दृग शिला को
बन जल-कण
आज बिखरने दो
मत छुओ इन पलकों को
बन अश्रु पीड़ा बहने दो।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है शुभकामनायें