मेरी व्यथा
अनकही सही
अनजानी नहीं है
मुझ जैसी हजारों नारियों की
कहानी यही है.
जन्म से ही
खुद को
अबला जाना
जीवन के हर मोड़ पर
परिजनों ने ही
हेय माना.
थी कितनी प्रफुल्लित मैं
उस अनूठे अहसास से
रच बस रहा था जब
एक नन्हा अस्तित्व
मेरी सांसों की तारों में
प्रकृति के हर स्वर में
नया संगीत सुन रही थीअपनी ही धुन में
न जाने कितने
स्वप्न बुन रही थी
लम्बी अमावस के बाद
पू्र्णिमा का चांद आया
एक नन्हीं सी कली ने
मेरे आंगन को सजाया
आए सभी मित्रगण सम्बन्धी
कुछ के चेहरे थे लटके
तो कुछ के नेत्रों में
आँसू थे अटके
भांति भांति से
सभी थे समझाते
कभी देते सांत्वना
तो कभी पीठ थपथपाते
कुछ ने तो दबे शब्दों में
यह भी कह डाला
घबराओ नही
खुलेगा कभी
तुम्हारी किस्मत का भी ताला
लुप्त हुआ गौरव
खो गया आनन्द
अनजानी पीड़ा से यह सोचकर
बोझिल हुआ मन
क्या हुआ अपराध
जो ये सब मुझे कोसते हैं
दबे शब्दों में
मन की कटुता में
मिश्री घोलते हैं
काश ममता में होता साहस
माँ की व्यथा को शब्द मिल जाते
चीखकर मेरी नन्ही कली का
सबसे परिचय यूं कराते
न इसे हेय
न अबला जानो
खिलने दो खुशबू पहचानो
bahut khoob..
ReplyDeletewish you a very happy new year..