Wednesday, April 04, 2018

वो लघु पल ना अबआएगा


वो लघु पल ना अबआएगा

बिता हर  पल ,
इतिहास नया रचाएगा ,
पर लौट कर -
वो लघु पल ना अबआएगा

निजता से तुमने
इन प्राणों  को
 अनमोल
बनाया था
बन पारस
जीवन-पाषाण
सजाया था
कहो प्रिये!
दूर होकर
तुमसे-
इनका मोल
अब कौन
चुकाएगा।

वो लघु पल ना अबआएगा

उर सागर में
जीवन तरंग
नित नया
लास रचाएंगी
कभी  करेंगी
अम्बर से बाते
तो कभी तट से
जा  टकराएंगी
कहो प्रिये!
दूर होकर
तुमसे-
चिर-दुख में
अन्तः सुख
का अब आभास
कौन कराएगा।

वो लघु पल ना अबआएगा

मन की व्यथा
पलक दोलों से
अश्रु बन
बह जाएगी
छलक कर
एल पल में
धूल में  जा
समाएगी
कहो प्रिये!
दूर होकर
तुमसे-
पीड़ा ,
लघु जीवन का
मर्म किसे सुनाएगी ।

वो लघु पल ना अबआएगा

चिर कामनाएँ
दूर गगन को
नित छूने
जाएंगी,
असीम तक
जा जाकर
लौट आएंगी
कहो प्रिये!
दूर होकर
तुमसे-
भला क्या
ये अब जी पाएंगी ?


No comments:

Post a Comment

ओ पाहुन.....