प्रिय ! तुम तक कैसे मैं आती
सांसो के अक्षय
बंधन में
बोझिल सांसें
आती जाती
पग -पग चलती
राह न पाती
अनजाने पथ में
खो जाती ।
प्रिय ! तुम तक कैसे मैं आती
सिसक -सिसक कर
मेरी पीड़ा
जब -जब अपनी
करुणा गाती
अपनी सुधि से
आधी -अधूरी
धूमिल सी
सुछवि बनाती
अविरल बहते
मेरे अश्रु
इक पल में ही
सब धो जाते ।
प्रिय ! तुम तक कैसे मैं आती
आशा की
चंचल लहरों ने
जब भी रचा
मिलन सवेरा
चिर वेदनाओं के
कम्पन ने डाला
विरह तम
का घेरा ।
प्रिय ! तुम तक कैसे मैं आती
कल्पना के
चल -पंखों से
जब -जब
तुम-तक
आना चाहा
अनजाने बेसुधपन में
मैंने तुमको -
खुद में खोया ,
खुद में पाया।
सांसो के अक्षय
बंधन में
बोझिल सांसें
आती जाती
पग -पग चलती
राह न पाती
अनजाने पथ में
खो जाती ।
प्रिय ! तुम तक कैसे मैं आती
सिसक -सिसक कर
मेरी पीड़ा
जब -जब अपनी
करुणा गाती
अपनी सुधि से
आधी -अधूरी
धूमिल सी
सुछवि बनाती
अविरल बहते
मेरे अश्रु
इक पल में ही
सब धो जाते ।
प्रिय ! तुम तक कैसे मैं आती
आशा की
चंचल लहरों ने
जब भी रचा
मिलन सवेरा
चिर वेदनाओं के
कम्पन ने डाला
विरह तम
का घेरा ।
प्रिय ! तुम तक कैसे मैं आती
चल -पंखों से
जब -जब
तुम-तक
आना चाहा
अनजाने बेसुधपन में
मैंने तुमको -
खुद में खोया ,
खुद में पाया।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति :)
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