आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (09-12-2018) को "कल हो जाता आज पुराना" (चर्चा अंक-3180) पर भी होगी। -- सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। -- चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है। जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये। हार्दिक शुभकामनाओं के साथ। सादर...! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हां,उत्तर तो कठिन है...पर शायद यही हमारे ज़िंदा होने को दर्शाता है I
ReplyDeleteThanks neeraj ji for your comments.
Deleteबहुत ही मार्मिक रचना और अत्यंत सुदक्ष , साहित्यिक शैली प्रिय दीपा जी | आपका लेखन आकर्षित करता है | हार्दिक शुभकामनायें |
ReplyDeleteसाभार धन्यवाद आदरणीया रेनू जी।
Deleteबहुत ही बेहतरीन रचना दीपशिखा जी सच आपके लिखने का अंदाज ही बहुत सुंदर है
ReplyDeleteआपका हार्दिक आभार आदरणीया अनुराधा जी।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (09-12-2018) को "कल हो जाता आज पुराना" (चर्चा अंक-3180) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
साभार धन्यवाद आदरणीय डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री जी।
Deleteजीवन के हर एहसास में, ख़ुशी गम में ... बह उठते हैं ये अश्रु ...
ReplyDeleteबहुत से गहरे लम्हों के तार बुने हैं इस रचना में ...
साभार धन्यवाद आदरणीया दिगम्बर जी।
Deleteबहुत खूबसूरत और हृदयस्पर्शी सृजन !!
ReplyDeleteसाभार धन्यवाद मीना जी
Deleteबहुत उम्दा
ReplyDeleteसाभार धन्यवाद आदरणीय लोकेश जी।
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteमार्मिक
साभार धन्यवाद आदरणीय।
Deleteसाभार धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत ही हॄदयस्पर्शी रचना दीपशिखा दी। बहुत ही बढ़िया प्रस्तूति।
ReplyDeleteस्स्नेह धन्यवाद प्रिय ज्योति।
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