चले थे भूलाने उनको
खुद को मिटा बैठे
बेखुदी मेँ यारों
अपना ही आशियाँ
जला बैठे
(II)
हर बार वही देखा
जो देखना चाहा
उनकी हर अदा को
हमने वफा जाना
भूल अपनी थी
जो बेवफा को
खुदा माना
(III)
होती थी जिसके आने से
मेरी सुबह शाम
क्या मालुम था वो चाँद
हर आंगन में निकला करता है
(IV)
उनको शिकायत है कि
हम हर बात में खफा होते हैं
कोई पूछे जाकर उनसे
वफा किसे कहते हैं
(V)
जाने कैसे दिल्लगी
दिल की लगी बन गई
क्योँ दे दोष उनको
भूल बेखुदी में
हमहीं से हो गई
(VI)
ना बन सके मेरे दामन की बहार
बन दर्द इस दिल में समा जाना
ना सुझे गर राह,
मिलने भी कभी मत आना
उखड़ने लगे जब "ये" साँस
बस एक झलक दिखा जाना
हर अल्फ़ाज़ में आग है
ReplyDeleteपत्थर के सनम तुझे हमने मोहब्बत का खुदा जाना
ReplyDeleteअच्छा लिखा हे
चले थे भूलाने उनको
ReplyDeleteखुद को मिटा बैठे
भूल अपनी थी
जो बेवफा को
खुदा माना
बहुत सुंदर!
अच्छा लिखा है आपने । िवषय की अभिव्यक्ित प्रखर है । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख महिलाओं के सपने की सच्चाई बयान करती तस्वीर लिखा है । समय हो तो उसे पढें और राय भी दें-
ReplyDeletehttp://www.ashokvichar.blogspot.com
shabd-sabd teri chot karti he.
ReplyDeletekadi dhup me anchal ki ot karti he.