Friday, November 28, 2008

स्पर्श

सिहर उठा उर सखी
पुलकित लधु प्राण है
मधुर‍ -मधुर सी इक कसक से
धुल रहा संताप है

पल्लवित हुआ जीवन कुसुम
बहे उन्मुक्त हर्ष‍‍‍ बयार है
नयनों की मधुशाला से
छलक -छलके खुमार है

दिशाएँ गा रहीं मिलन गीत
स्वनोँ मेँ जो आया मनमीत
छूकर अघरोँ से नयन दीप
कर गया व्याकुल ह्रदय अधीर







2 comments:

  1. बहुत अच्छी रचना के लिये धन्यवाद ,
    सादर

    हेम ज्योत्स्ना "दीप"
    http://hemjyotsana.wordpress.com

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ओ पाहुन.....