सिहर उठा उर सखी
पुलकित लधु प्राण है
मधुर -मधुर सी इक कसक से
धुल रहा संताप है
पल्लवित हुआ जीवन कुसुम
बहे उन्मुक्त हर्ष बयार है
नयनों की मधुशाला से
छलक -छलके खुमार है
दिशाएँ गा रहीं मिलन गीत
स्वनोँ मेँ जो आया मनमीत
छूकर अघरोँ से नयन दीप
कर गया व्याकुल ह्रदय अधीर
पुलकित लधु प्राण है
मधुर -मधुर सी इक कसक से
धुल रहा संताप है
पल्लवित हुआ जीवन कुसुम
बहे उन्मुक्त हर्ष बयार है
नयनों की मधुशाला से
छलक -छलके खुमार है
दिशाएँ गा रहीं मिलन गीत
स्वनोँ मेँ जो आया मनमीत
छूकर अघरोँ से नयन दीप
कर गया व्याकुल ह्रदय अधीर
lovely
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना के लिये धन्यवाद ,
ReplyDeleteसादर
हेम ज्योत्स्ना "दीप"
http://hemjyotsana.wordpress.com