ये पति
एक सुंदर ,गोरी ,कमसिन ,
चंचल चपला ने ,
अपने श्यामवर्णी ,
पति से पूछा
सुनो जी ,
जब मैं ना रहूंगी
क्या आप पुनः
ब्याह रचाओगे
मेरी जगह
किसी अन्य को
इस घर की लक्ष्मी बनाओगे ।
बात सुनकर
पत्नी जी की
पति जी ने
विस्मय से
उसको देखा
देख पूरे होते
अधूरे स्वपन
हृदय की उठती
तरंगों को रोका
भांप नजाकत समय की
गंभीरता को
मुखमंडल में समेटा ।
कुछ पल रुका
कुछ सोचा
फिर तुनककर
यूँ बोला , प्रियतमा,
माना कि तुम हो अपव्ययी
फिर भी ,
तुम मेरी निधि हो
ना सही मिसेस खन्ना
मेरे लिए तुम्ही परी हो ,
बेरुखी हो तो क्या
मेरे लिए सावन की झड़ी हो ,
इस बंजर जीवन में
जो खिल सकी
वो तुम ही तो एक कली हो ।
बात करके अनहोनी की
क्यों हर पल
मुझे कोसती हो
मेरी तो छोड़ो
ये नन्हे नन्हे
दिल तोड़ती हो ।
ना रही गर तुम
तो भला
कैसे जिऊंगा मैं
भरी जवानी में
क्या पतझड़ सहुँगा मैं?
गर लानी भी पड़ी कोई
जैसे -तैसे सब सहुँगा मैं
मान तुम्हारी प्रतिमूर्ति
बस उसको पूजुँगा मैं
पर कसम तुम्हारी
इन नन्ही आंखों को
ना रोने दूंगा मैं