नहीं चाहती
करो तुम
मुझ पर
कोई उपकार
देना चाहो तो
दे देना
सच्चे नेह
का उपहार।
सपनों के
अनंत पथ में
थम जाऊँ
जब जब
होकर हताश
रच देना
तब तब
आकर तुम
आशा का
नया आकाश।
व्यथित उर
की वेदना
जब धूमिल
कर दे
मेरा श्रृंगार
अपनी मधुर
छटा से
तुम आकर
हर लेना
हर संताप ।
रूठ जाऊं
कभी तुमसे
ना आऊं
मिलने
उस पार
नेह पाती
भेजकर
मना लेना
तुम हर बार ।
जीवन पथ में
चलते चलते
छूट गया
गर हाथ
मन वीणा की
डोर से
पढ़ लेना
मन से
मन की बात।
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