Friday, March 02, 2018

कामना


नहीं चाहती 
करो तुम 
मुझ पर 
कोई उपकार 
देना चाहो तो 
दे देना 
सच्चे नेह
का उपहार।       

सपनों के
अनंत पथ में 
थम जाऊँ 
जब जब 
होकर हताश 
रच देना 
तब तब
आकर तुम 
आशा का 
नया आकाश।

व्यथित उर
 की वेदना 
जब धूमिल 
 कर दे 
मेरा श्रृंगार 
अपनी मधुर 
छटा से
तुम आकर 
हर लेना 
हर संताप ।

रूठ जाऊं 
कभी तुमसे 
ना आऊं 
मिलने 
उस पार 
नेह पाती 
भेजकर 
मना लेना 
तुम हर बार ।

जीवन पथ में 
चलते चलते 
छूट गया
गर हाथ 
मन वीणा की 
डोर से 
पढ़ लेना
 मन से 
मन की बात।

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ओ पाहुन.....