Sunday, March 18, 2018

है आज विकल लघु प्राण मेरे


                                                               है आज विकल लघु प्राण मेरे...


पल पल में  बसे
युगों के फेरे
विरह तम ने लगाए
क्यू्ं  उर पर पहरे

है आज विकल लघु प्राण मेरे....

अनंत पथ से
उठ रही ये कैसी पदचाप है
कामनाएं कर रही
क्यू प्रलय नाद है

है आज विकल लघु प्राण मेरे....

हो रहा विलुप्त भेद
जीवन-निर्वाण में
दिख रहे सुख-दुःख
क्यू्ं सब एक है

है आज विकल लघु प्राण मेरे....

ना विरह संताप कोई
ना मिलन उन्माद है
घुल गए सभी आवेग
क्यू्ं  उर में आज है

है आज विकल लघु प्राण मेरे....

मूक व्यथा
कर रही  मेरा श्रंगार है
श्वासों के तार
क्यू्ं टूट रहे बारम्बार है

है आज विकल लघु प्राण मेरे...

No comments:

Post a Comment

ओ पाहुन.....