अलि री सघन पथ ये प्रेम का
कभी हंसते आर्द्र नयन
सुख का आसव छलकाने को
बने समाधि एक पल में
सुख-दुख का भेद मिटाने को ।
भटके कभी व्याकुल मन
प्रिय छवि पाने को
कभी छिपे प्रिय से ही
मन का भेद छिपाने को।
उठे उर में कभी तरंगें
नवजीवन राग सुनाने को
हो जाए निस्पंद कभी ये
चिर वेदनाओं के आ जाने से।
मचलें कभी अभिलाषाएं
नया वितान सजाने को
कभी घुलें हिम-कण सी
प्रिय से दूर हो जाने पर।
कभी हंसते आर्द्र नयन
सुख का आसव छलकाने को
बने समाधि एक पल में
सुख-दुख का भेद मिटाने को ।
भटके कभी व्याकुल मन
प्रिय छवि पाने को
कभी छिपे प्रिय से ही
मन का भेद छिपाने को।
उठे उर में कभी तरंगें
नवजीवन राग सुनाने को
हो जाए निस्पंद कभी ये
चिर वेदनाओं के आ जाने से।
मचलें कभी अभिलाषाएं
नया वितान सजाने को
कभी घुलें हिम-कण सी
प्रिय से दूर हो जाने पर।
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